Tuesday, June 7, 2016

स्वप्न ज्योतिष

स्वप्न ज्योतिष के अनुसार नींद में दिखाई देने वाले हर सपने का एक ख़ास संकेत होता है, एक ख़ास फल होता है। आइए जानें 251 ऐसे सपनो के स्वपन ज्योतिष के अनुसार संभावित फल ।सपने फल1- आंखों में काजल लगाना- शारीरिक कष्ट होना2- स्वयं के कटे हाथ देखना- किसी निकट परिजन की मृत्यु3- सूखा हुआ बगीचा देखना- कष्टों की प्राप्ति4- मोटा बैल देखना- अनाज सस्ता होगा5- पतला बैल देखना - अनाज महंगा होगा6- भेडिय़ा देखना- दुश्मन से भय7- राजनेता की मृत्यु देखना- देश में समस्या होना8- पहाड़ हिलते हुए देखना- किसी बीमारी का प्रकोप होना9- पूरी खाना- प्रसन्नता का समाचार मिलना10- तांबा देखना- गुप्त रहस्य पता लगना11- पलंग पर सोना- गौरव की प्राप्ति12- थूक देखना- परेशानी में पडऩा13- हरा-भरा जंगल देखना- प्रसन्नता मिलेगी14- स्वयं को उड़ते हुए देखना- किसी मुसीबत से छुटकारा15- छोटा जूता पहनना- किसी स्त्री से झगड़ा16- स्त्री से मैथुन करना- धन की प्राप्ति17- किसी से लड़ाई करना- प्रसन्नता प्राप्त होना18- लड़ाई में मारे जाना- राज प्राप्ति के योग19- चंद्रमा को टूटते हुए देखना- कोई समस्या आना20- चंद्रग्रहण देखना- रोग होना21- चींटी देखना- किसी समस्या में पढऩा22- चक्की देखना- शत्रुओं से हानि23- दांत टूटते हुए देखना- समस्याओं में वृद्धि24- खुला दरवाजा देखना- किसी व्यक्ति से मित्रता होगी25- बंद दरवाजा देखना- धन की हानि होना26- खाई देखना- धन और प्रसिद्धि की प्राप्ति27- धुआं देखना- व्यापार में हानि28- भूकंप देखना- संतान को कष्ट29- सुराही देखना- बुरी संगति से हानि30- चश्मा लगाना- ज्ञान बढऩा31- दीपक जलाना- नए अवसरों की प्राप्ति32- आसमान में बिजली देखना- कार्य-व्यवसाय में स्थिरता33- मांस देखना- आकस्मिक धन लाभ34- विदाई समारोह देखना- धन-संपदा में वृद्धि35- टूटा हुआ छप्पर देखना- गड़े धन की प्राप्ति के योग36- पूजा-पाठ करते देखना- समस्याओं का अंत37- शिशु को चलते देखना- रुके हुए धन की प्राप्ति38- फल की गुठली देखना- शीघ्र धन लाभ के योग39- दस्ताने दिखाई देना- अचानक धन लाभ40- शेरों का जोड़ा देखना- दांपत्य जीवन में अनुकूलता41- मैना देखना- उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति42- सफेद कबूतर देखना- शत्रु से मित्रता होना43- बिल्लियों को लड़ते देखना- मित्र से झगड़ा44- सफेद बिल्ली देखना- धन की हानि45- मधुमक्खी देखना- मित्रों से प्रेम बढऩा46- खच्चर दिखाई देना- धन संबंधी समस्या47- रोता हुआ सियार देखना- दुर्घटना की आशंका48- समाधि देखना- सौभाग्य की प्राप्ति49- गोबर दिखाई देना- पशुओं के व्यापार में लाभ50- चूड़ी दिखाई देना- सौभाग्य में वृद्धि51- दियासलाई जलाना- धन की प्राप्ति52- सीना या आंख खुजाना- धन लाभ53- सूखा जंगल देखना- परेशानी होना54- मुर्दा देखना- बीमारी दूर होना55- आभूषण देखना- कोई कार्य पूर्ण होना56- जामुन खाना- कोई समस्या दूर होना57- जुआ खेलना- व्यापार में लाभ58- धन उधार देना- अत्यधिक धन की प्राप्ति59- चंद्रमा देखना- सम्मान मिलना60- चील देखना- शत्रुओं से हानि61- स्वयं को दिवालिया घोषित करना- व्यवसाय चौपट होना62- चिडिय़ा को रोते देखता- धन-संपत्ति नष्ट होना63- चावल देखना- किसी से शत्रुता समाप्त होना64- चांदी देखना- धन लाभ होना65- दलदल देखना- चिंताएं बढऩा66- कैंची देखना- घर में कलह होना67- सुपारी देखना- रोग से मुक्ति68- लाठी देखना- यश बढऩा69- खाली बैलगाड़ी देखना- नुकसान होना70- खेत में पके गेहूं देखना- धन लाभ होना71- फल-फूल खाना- धन लाभ होना72- सोना मिलना- धन हानि होना73- शरीर का कोई अंग कटा हुआ देखना- किसी परिजन की मृत्यु के योग74- कौआ देखना- किसी की मृत्यु का समाचार मिलना75- धुआं देखना- व्यापार में हानि76- चश्मा लगाना- ज्ञान में बढ़ोत्तरी77- भूकंप देखना- संतान को कष्ट78- रोटी खाना- धन लाभ और राजयोग79- पेड़ से गिरता हुआ देखना- किसी रोग से मृत्यु होना80- श्मशान में शराब पीना- शीघ्र मृत्यु होना81- रुई देखना- निरोग होने के योग82- कुत्ता देखना- पुराने मित्र से मिलन83- सफेद फूल देखना- किसी समस्या से छुटकारा84- उल्लू देखना- धन हानि होना85- सफेद सांप काटना- धन प्राप्ति86- लाल फूल देखना- भाग्य चमकना87- नदी का पानी पीना- सरकार से लाभ88- धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना- यश में वृद्धि व पदोन्नति89- कोयला देखना- व्यर्थ विवाद में फंसना90- जमीन पर बिस्तर लगाना- दीर्घायु और सुख में वृद्धि91- घर बनाना- प्रसिद्धि मिलना92- घोड़ा देखना- संकट दूर होना93- घास का मैदान देखना- धन लाभ के योग94- दीवार में कील ठोकना- किसी बुजुर्ग व्यक्ति से लाभ95- दीवार देखना- सम्मान बढऩा96- बाजार देखना- दरिद्रता दूर होना97- मृत व्यक्ति को पुकारना- विपत्ति एवं दु:ख मिलना98- मृत व्यक्ति से बात करना- मनचाही इच्छा पूरी होना99- मोती देखना- पुत्री प्राप्ति100- लोमड़ी देखना- किसी घनिष्ट व्यक्ति से धोखा मिलना101- अनार देखना- धन प्राप्ति के योग
102- गड़ा धन दिखाना- अचानक धन लाभ103- सूखा अन्न खाना- परेशानी बढऩा104- अर्थी देखना- बीमारी से छुटकारा105- झरना देखना- दु:खों का अंत होना106- बिजली गिरना- संकट में फंसना107- चादर देखना- बदनामी के योग108- जलता हुआ दीया देखना- आयु में वृद्धि109- धूप देखना- पदोन्नति और धनलाभ110- रत्न देखना- व्यय एवं दु:ख111- चेक लिखकर देना- विरासत में धन मिलना112- कुएं में पानी देखना- धन लाभ113- आकाश देखना - पुत्र प्राप्ति114- अस्त्र-शस्त्र देखना- मुकद्में में हार115- इंद्रधनुष देखना - उत्तम स्वास्थ्य116- कब्रिस्तान देखना- समाज में प्रतिष्ठा117- कमल का फूल देखना- रोग से छुटकारा118- सुंदर स्त्री देखना- प्रेम में सफलता119- चूड़ी देखना- सौभाग्य में वृद्धि120- कुआं देखना- सम्मान बढऩा121- गुरु दिखाई देना - सफलता मिलना122- गोबर देखना- पशुओं के व्यापार में लाभ123- देवी के दर्शन करना- रोग से मुक्ति124- चाबुक दिखाई देना- झगड़ा होना125- चुनरी दिखाई देना- सौभाग्य की प्राप्ति126- छुरी दिखना- संकट से मुक्ति127- बालक दिखाई देना- संतान की वृद्धि128- बाढ़ देखना- व्यापार में हानि129- जाल देखना- मुकद्में में हानि130- जेब काटना- व्यापार में घाटा131- चंदन देखना- शुभ समाचार मिलना132- जटाधारी साधु देखना- अच्छे समय की शुरुआत133- स्वयं की मां को देखना- सम्मान की प्राप्ति134- फूलमाला दिखाई देना- निंदा होना135- जुगनू देखना- बुरे समय की शुरुआत136- टिड्डी दल देखना- व्यापार में हानि137- डाकघर देखना - व्यापार में उन्नति138- डॉक्टर को देखना- स्वास्थ्य संबंधी समस्या139- ढोल दिखाई देना- किसी दुर्घटना की आशंका140- सांप दिखाई देना- धन लाभ141- तपस्वी दिखाई देना- दान करना142- तर्पण करते हुए देखना- परिवार में किसी बुुजुर्ग की मृत्यु143- डाकिया देखना - दूर के रिश्तेदार से मिलना144- तमाचा मारना- शत्रु पर विजय145- उत्सव मनाते हुए देखना- शोक होना146- दवात दिखाई देना- धन आगमन147- नक्शा देखना- किसी योजना में सफलता148- नमक देखना- स्वास्थ्य में लाभ149- कोर्ट-कचहरी देखना- विवाद में पडऩा150- पगडंडी देखना- समस्याओं का निराकरण151- त्रिशूल देखना- शत्रुओं से मुक्ति152- तारामंडल देखना- सौभाग्य की वृद्धि153- ताश देखना- समस्या में वृद्धि154- तीर दिखाई देना- लक्ष्य की ओर बढऩा155- सूखी घास देखना- जीवन में समस्या156- भगवान शिव को देखना- विपत्तियों का नाश157- किसी रिश्तेदार को देखना- उत्तम समय की शुरुआत158- दंपत्ति को देखना- दांपत्य जीवन में अनुकूलता159- शत्रु देखना- उत्तम धनलाभ160- दूध देखना- आर्थिक उन्नति161- मंदिर देखना- धार्मिक कार्य में सहयोग करना162- नदी देखना- सौभाग्य वृद्धि163- नाच-गाना देखना- अशुभ समाचार मिलने के योग164- नीलगाय देखना- भौतिक सुखों की प्राप्ति165- नेवला देखना- शत्रुभय से मुक्ति166- पगड़ी देखना- मान-सम्मान में वृद्धि167- पूजा होते हुए देखना- किसी योजना का लाभ मिलना168- फकीर को देखना- अत्यधिक शुभ फल169- गाय का बछड़ा देखना- कोई अच्छी घटना होना170- वसंत ऋतु देखना- सौभाग्य में वृद्धि171- बिल्वपत्र देखना- धन-धान्य में वृद्धि172- स्वयं की बहन देखना- परिजनों में प्रेम बढऩा173- भाई को देखना- नए मित्र बनना174- भीख मांगना- धन हानि होना175- शहद देखना- जीवन में अनुकूलता176- स्वयं की मृत्यु देखना- भयंकर रोग से मुक्ति177- रुद्राक्ष देखना- शुभ समाचार मिलना178- पैसा दिखाई देना- धन लाभ179- स्वर्ग देखना- भौतिक सुखों में वृद्धि180- पत्नी को देखना- दांपत्य में प्रेम बढऩा181- स्वस्तिक दिखाई देना- धन लाभ होना182- हथकड़ी दिखाई देना- भविष्य में भारी संकट183- मां सरस्वती के दर्शन- बुद्धि में वृद्धि184- कबूतर दिखाई देना- रोग से छुटकारा185- कोयल देखना- उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति186- अजगर दिखाई देना- व्यापार में हानि187- कौआ दिखाई देना- बुरी सूचना मिलना188- छिपकली दिखाई देना- घर में चोरी होना189- चिडिय़ा दिखाई देना- नौकरी में पदोन्नति190- तोता दिखाई देना- सौभाग्य में वृद्धि191- भोजन की थाली देखना- धनहानि के योग192- इलाइची देखना - मान-सम्मान की प्राप्ति193- खाली थाली देखना- धन प्राप्ति के योग194- गुड़ खाते हुए देखना- अच्छा समय आने के संकेत195- शेर दिखाई देना- शत्रुओं पर विजय196- हाथी दिखाई देना- ऐेश्वर्य की प्राप्ति197- कन्या को घर में आते देखना- मां लक्ष्मी की कृपा मिलना198- सफेद बिल्ली देखना- धन की हानि199- दूध देती भैंस देखना- उत्तम अन्न लाभ के योग200- चोंच वाला पक्षी देखना- व्यवसाय में लाभ201- अंगूठी पहनना- सुंदर स्त्री प्राप्त करना202- आकाश में उडऩा- लंबी यात्रा करना203- आकाश से गिरना- संकट में फंसना204- आम खाना- धन प्राप्त होना205- अनार का रस पीना- प्रचुर धन प्राप्त होना206- ऊँट को देखना- धन लाभ207- ऊँट की सवारी- रोगग्रस्त होना208- सूर्य देखना- खास व्यक्ति से मुलाकात209- आकाश में बादल देखना- जल्दी तरक्की होना

गायत्री की गुप्त शक्तियाँ

गायत्री की गुप्त शक्तियाँ
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
गायत्री सनातन एवं अनादि मंत्र है। पुराणों में कहा गया है कि ‘‘सृष्टिकर्त्ता ब्रह्मा को आकाशवाणी द्वारा गायत्री मंत्र प्राप्त हुआ था, इसी गायत्री की साधना करके उन्हें सृष्टि निर्माण की शक्ति प्राप्त हुई। गायत्री के चार चरणों की व्याख्या स्वरूप ही ब्रह्माजी ने चार मुखों से चार वेदों का वर्णन किया। गायत्री को वेदमाता कहते हैं। चारों वेद, गायत्री की व्याख्या मात्र हैं।’’ गायत्री को जानने वाला वेदों को जानने का लाभ प्राप्त करता है।
गायत्री के 24 अक्षर 24 अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण शिक्षाओं के प्रतीक हैं। वेद, शास्त्र, पुराण, स्मृति, उपनिषद् आदि में जो शिक्षाएँ मनुष्य जाति को दी गई हैं, उन सबका सार इन 24 अक्षरों में मौजूद है। इन्हें अपनाकर मनुष्य प्राणी व्यक्तिगत तथा सामाजिक सुख-शान्ति को पूर्ण रूप से प्राप्त कर सकता है। गायत्री गीता, गंगा और गौ यह भारतीय संस्कृति की चार आधारशिलायें हैं, इन सबमें गायत्री का स्थान सर्व प्रथम है। जिसने गायत्री के छिपे हुए रहस्यों को जान लिया, उसके लिए और कुछ जानना शेष नहीं रहता।
समस्त धर्म ग्रन्थों में गायत्री की महिमा एक स्वर से कही गई। समस्त ऋषि-मुनि मुक्त कण्ठ से गायत्री का गुण-गान करते हैं। शास्त्रों में गायत्री की महिमा बताने वाला साहित्य भरा पड़ा है। उसका संग्रह किया जाय, तो एक बड़ा ग्रन्थ ही बन सकता है। गीता में भगवान् ने स्वयं कहा है ‘गायत्री छन्दसामहम्’ अर्थात् गायत्री मंत्र मैं स्वयं ही हूँ। 
गायत्री उपासना के साथ-साथ अन्य कोई उपासना करते रहने में कोई हानि नहीं। सच तो यह है कि अन्य किसी भी मन्त्र का जाप करने में या देवता की उपासना में तभी सफलता मिलती है, जब पहले गायत्री द्वारा उस मंत्र या देवता को जाग्रत कर लिया जाए। कहा भी है-
यस्य कस्यापि मन्त्रस्य पुरश्चरणमारभेत्। 
व्याहृतित्रयसंयुक्तां गायत्रीं चायुतं जपेत्।।
नृसिंहार्कवराहाणां तान्त्रिक वैदिकं तथा। 
बिना जप्त्वातु गायत्रीं तत्सर्वं निष्फल भवेत।।
दे.भा.11.21.4-5
चाहे किसी मंत्र का साधन किया जाए। उस मंत्र को व्याहृति समत गायत्री सहित जपना चाहिए। चाहे नृसिंह, सूर्य, वराह आदि किसी की उपासना हो या वैदिक एवं तान्त्रिक प्रयोग किया जाए, बिना गायत्री को आगे लिए वे सब निष्फल होते हैं। इसलिए गायत्री उपासना प्रत्येक साधक के लिए आवश्यक है।
गायत्री सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वोत्तम मन्त्र है। जो कार्य संसार में किसी अन्य मन्त्र से हो सकता है, गायत्री से भी अवश्य हो सकता है। इस साधना में कोई भूल रहने पर भी किसी का अनिष्ट नहीं होता, इससे सरल, स्वल्प, श्रम साध्य और शीघ्र फलदायिनी साधना दूसरी नहीं है।
समस्त धर्म ग्रन्थों में गायत्री की महिमा एक स्वर से कही गई है। अथवर्वेद में गायत्री को आयु, विद्या, सन्तान, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली कहा गया है। विश्वामित्र ऋषि का कथन है-‘‘गायत्री के समान चारों वेदों में कोई मंत्र नहीं है। सम्पूर्ण वेद, यज्ञ, दान, तप गायत्री की एक कला के समान भी नहीं है।’’
गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों में अनेक ज्ञान-विज्ञान छिपे हुए हैं। अनेक दिव्य अस्त्र-शस्त्र, सोना आदि बहुमूल्य धातुओं का बनाना, अमूल्य औषधियाँ, रसायनें, दिव्य यन्त्र अनेक ऋद्धि-सिद्धियाँ, शाप, वरदान के प्रयोग, नाना प्रयोजनों के लिए नाना प्रकार के उपचार, परोक्ष विद्या, अन्तर्दृष्टि, प्राण विद्या, वेधक, प्रक्रिया, शूल शाल्य, वाममार्गी तंत्र विद्या, कुण्डलिनी, चक्र, दश, महाविद्या, महामातृका, जीवन, निर्मोक्ष, रूपान्तरण, अक्षात, सेवन, अदृश्य, दर्शन, शब्द परव्यूह, सूक्ष्म संभाषण आदि अनेक लुप्त प्राय महान् विद्याओं के रहस्य बीज और संकेत गायत्री में मौजूद हैं। इन विद्याओं के कारण एक समय हम जगद्गुरु, चक्रवर्ती शासक और स्वर्ग सम्पदाओं के स्वामी बने हुए थे, आज इन विद्याओं को भूलकर हम सब प्रकार दीन- हीन बने हुए हैं। गायत्री में सन्निहित उन विद्याओं का यदि फिर प्रकटीकरण हो जाए, तो हम अपना प्राचीन गौरव प्राप्त कर सकते हैं।
गायत्री साधना द्वारा आत्मा पर जमे हुए मल विक्षेप हट जाते हैं, तो आत्मा का शुद्ध स्वरूप प्रकट होता है और अनेक ऋद्धि-सिद्धियाँ परिलक्षित होने लगती हैं। दर्पण माँज पर उसका मैल छूट जाता है, उसी प्रकार गायत्री साधना से आत्मा निर्मल एवं प्रकाशवान् होकर ईश्वरीय शक्तियों, गुणों, सामर्थ्यों एवं सिद्धियों से परिपूर्ण बन जाती है।
आत्मा के कल्याण की अनेक साधनायें हैं। सभी का अपना-अपना महत्त्व है और उनके परिणाम भी अलग-अलग हैं। ‘स्वाध्याय’ से सन्मार्ग की जानकारी होती है। ‘सत्संग’ से स्वभाव और संस्कार बनते हैं। कथा सुनने से सद्भावनाएँ जाग्रत होती हैं। ‘तीर्थयात्रा’ से भावांकुर पुष्ट होते हैं। ‘कीर्तन’ से तन्मयता का अभ्यास होता है। दान-पुण्य से सुख-सौभाग्यों की वृद्धि होती है। ‘पूजा-अर्चा’ से आस्तिकता बढ़ती है। इस प्रकार यह सभी साधन ऋषियों ने बहुत सोच-समझकर प्रचलित किये हैं। पर ‘तप’ का महत्त्व इन सबसे अधिक है। तप की अग्नि में पड़कर ही आत्मा के मल विक्षेप और पाप-ताप जलते हैं। जप के द्वारा ही आत्मा में वह प्रचण्ड बल पैदा होता है, जिसके द्वारा सांसारिक तथा आत्मिक जीवन की समस्याएँ हल होती हैं। तप की सामर्थ्य से ही नाना प्रकार की सूक्ष्म शक्तियाँ और दिव्य सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। इसलिए तप साधन को सबसे शक्तिशाली माना गया है। तप के बिना आत्मा में अन्य किसी भी साधन से तेज प्रकाश बल एवं पराक्रम उत्पन्न नहीं होता।
गायत्री उपासना प्रत्यक्ष तपश्चर्या है, इससे तुरन्त आत्मबल बढ़ता है। गायत्री साधना एक बहुमूल्य दिव्य सम्पक्ति है। इस सम्पत्ति को इकट्ठी करके साधक उसके बदले में सांसारिक सुख एवं आत्मिक आनन्द भली प्रकार प्राप्त कर सकता है। 
गायत्री मंत्र से आत्मिक कायाकल्प हो जाता है। इस महामंत्र की उपासना आरम्भ करते ही साधक को ऐसा प्रतीत होता है कि मेरे आन्तरिक क्षेत्र में एक नई हलचल एवं रद्दोबदल आरम्भ हो गई है। सतोगुणी तत्त्वों की अभिवृद्धि होने से दुर्गुण, कुविचार, दुःस्वभाव एवं दुर्भाव घटने आरम्भ हो जाते हैं और संयम, नम्रता, पवित्रता, उत्साह, स्फूर्ति, श्रमशीलता, मधुरता, ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, उदारता, प्रेम, सन्तोष, शान्ति, सेवाभाव, आत्मीयता आदि सद्गुणों की मात्रा दिन-दिन बड़ी तेजी से बढ़ती जाती है। फलस्वरूप लोग उसके स्वभाव एवं आचरण से सन्तुष्ट होकर बदले में प्रशंसा, कृतज्ञता, श्रद्धा एवं सम्मान के भाव रखते हैं और समय-समय पर उसकी अनेक प्रकार से सहायता करते रहते हैं। इसके अतिरिक्त सद्गुण स्वयं इतने मधुर होते हैं, कि जिस हृदय में इनका निवास होगा, वहाँ आत्म सन्तोष की परम शान्तिदायक शीतल निर्झरिणी सदा बहती है। ऐसे लोग सदा स्वर्गीय सुख आस्वादन करते हैं।
गायत्री साधना के साधक के मनःक्षेत्र में असाधारण परिवर्तन हो जाता है। विवेक, दूरदर्शिता, तत्त्वज्ञान और ऋतम्भरा बुद्धि की अभिवृद्धि हो जाने के कारण अनेक अज्ञान जन्य दुःखों का निवारण हो जाता है। प्रारब्धवश अनिवार्य कर्मफल के कारण कष्टसाध्य परिस्थितियाँ हर एक के जीवन में आती रहती हैं, हानि, शोक, वियोग, आपत्ति, रोग, आक्रमण, विरोध, आघात आदि की विभिन्न परिस्थितियों से जहाँ साधारण मनोभूमि के लोग मृत्यु तुल्य कष्ट पाते हैं। वहाँ आत्मबल सम्पन्न गायत्री साधक अपने विवेक, ज्ञान, वैराग्य, साहस, आशा, धैर्य, सन्तोष, संयम और ईश्वर विश्वास के आधार पर इन कठिनाइयों को हँसते-हँसते आसानी से काट लेता है। बुरी अथवा असाधारण परिस्थितियों में भी वह अपने आनन्द का मार्ग ढूँढ़ निकालता है और मस्ती, प्रसन्नता एवं निराकुलता का जीवन बिताता है।
प्राचीन काल में ऋषियों ने बड़ी-बड़ी तपस्यायें और योग्य साधनायें करके अणिमा, महिमा आदि चमत्कारी ऋद्धि -सिद्धियाँ प्राप्त की थीं। उनके शाप और वरदान सफल होते थे तथा वे कितने ही अद्भुत एवं चमत्कारी सामर्थ्यों से भरे पूरे थे, इनका वर्णन इतिहास, पुराणों में भरा पड़ा है। वह तपस्यायें और योग -साधनायें गायत्री के आधार पर ही होती थीं। गायत्री महाविद्या से ही 84 प्रकार की महान् योग साधनाओं का उद्भव हुआ है।
गायत्री के 24 अक्षरों का गुंथन ऐसा विचित्र एवं रहस्यमय है कि उनके उच्चारण मात्र से जिह्मा, कण्ठ, तालु एवं मूर्धा में अवस्थित नाड़ी तंतुओं का एक अद्भुत क्रम में संचालन होता है। टाइप राइटर की कुन्जियों पर उँगली रखते ही जैसे कागज पर अक्षर की चोट पड़ती है, वैसे ही मुख में मंत्र का उच्चारण होने से शरीर में विविध स्थानों पर छिपे हुए शक्ति चक्रों पर उसकी चोट पड़ती है और उनका सूक्ष्म जागरण होता है। इस संचालन से शरीर के विविझ स्थानों में छिपे हुए षट्चक्र भ्रमर, कमल, ग्रन्थि संस्थान एवं शक्ति चक्र झंकृत होने लगते हैं। मुख की नाड़ियों द्वारा गायत्री के शब्दों के उच्चारण का आघात उन चक्रों तक पहुँचता है। जैसे सितार के तारों पर क्रमबद्ध उँगलियों फिराने से एक स्वर लहरी एवं ध्वनि तरंग उत्पन्न होती है, वैसी ही गायत्री चौबीस अक्षरों का उच्चारण उन चौबीस चक्रों में झंकारमय गुंजार उत्पन्न करता है, जिससे वे स्वयमेव जाग्रत् होकर अधिक को योग शक्तियों से सम्पन्न बनाते हैं। इस प्रकार गायत्री के जप से अनायास ही एक महत्त्वपूर्ण योग साधना होने लगती है और उन गुप्त शक्ति केन्द्रों के जागरण से आश्चर्यजनक लाभ मिलने लगता है।
गायत्री भगवान् का नारी रूप है। भगवान् की माता के रूप में उपासना करने से दर्पण के प्रतिबिम्ब एवं कुएँ की आवाज की तरह वे भी हमारे लिए उसी प्रकार प्रत्युत्तर देते हैं, संसार में सबसे अधिक स्नेहमूर्ति माता होती है। भगवान् की माता के रूप में उपासना करने से प्रत्युत्तर में उनका अपार वात्सल्य प्राप्त होता है। मातृ पूजा से नारी जाति के प्रति पवित्रता, सदाचार एवं आदर के भाव बढ़ते हैं, जिनकी कि मानव जाति को आज अत्यधिक आवश्यकता है

भगवान शिव द्वारा प्रेम का रहस्य

भगवान शिव द्वारा प्रेम का रहस्य
पार्वती शिव की केवल अर्धांगिनी ही नहीं अपितु शिष्या भी बनी, वे नित्य ही अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए शिव से अनेकों प्रश्न पूछती और उन पर चर्चा करती. एक दिन उन्होंने शिव से कहा -
पार्वती:- प्रेम क्या है बताइए महादेव, कृप्या बताइए की प्रेम का रहस्य क्या है, क्या है इसका वास्तविक स्वरुप, क्या है इसका भविष्य. आप तो हमारे गुरु की भी भूमिका निभा रहे हैं इस प्रेम ज्ञान से अवगत कराना भी तो आपका ही दायित्व है. बताइए महादेव.
शिव:- प्रेम क्या है,यह तुम पूछ रही हो पार्वती? प्रेम का रहस्य क्या है? प्रेम का स्वरुप क्या है? तुमने ही प्रेम के अनेको रूप उजागर किये हैं पार्वती, तुमसे ही प्रेम की अनेक अनुभूतियाँ हुयी. तुम्हारे प्रश्न में ही तुम्हारा उत्तर निहित है.
पार्वती:- क्या इन विभिन अनुभूतियों की अभिव्यक्ति संभव है?
शिव:- सती के रूप में जब तुम अपने प्राण त्याग जब तुम दूर चली गयी, मेरा जीवन, मेरा संसार, मेरा दायित्व, सब निरर्थक और निराधार हो गया. मेरे नेत्रों से अश्रुओं की धाराएँ बहने लगी. अपने से दूर कर तुमने मुझे मुझ से भी दूर कर दिया था.
पार्वती, ये ही तो प्रेम है पार्वती. तुम्हारे अभाव में मेरे अधूरेपन की अति से इस सृष्ठी का अपूर्ण हो जाना ये ही प्रेम है. तुम्हारे और मेरे पुन: मिलन कराने हेतु इस समस्त ब्रह्माण्ड का हर संभव प्रयास करना हर संभव षड्यंत्र रचना, इसका कारण हमारा असीम प्रेम ही तो है. तुम्हारा पार्वती के रूप में पुन: जनम लेकर मेरे एकांकीपन और मुझे मेरे वैराग्य से बहार निकलने पर विवश करना, और मेरा विवश हो जाना यह प्रेम ही तो है.
जब-जब अन्नपूर्णा के रूप में तुम मेरी क्षुधा को बिना प्रतिबन्धन के शांत करती हो या कामख्या के रूप में मेरी कामना करती हो तो वह प्रेम की अनुभूति ही है.
तुम्हारे सौम्य और सहज गौरी रूप में हर प्रकार के अधिकार जब मैं तुम पर व्यक्त करता हूँ और तुम उन अधिकारों को मान्यता देती हो और मुझे विशवास दिलाती रहती हो की सिवाए मेरे इस संसार में तुम्हे किसी का वर्चस्व स्वीकार नहीं तो वह प्रेम की अनुभूति ही होती है.
जब तुम मनोरंजन हेतु मुझे चौसर में पराजित करती हो तो भी विजय मेरी ही होती है, क्योंकि उस समय तुम्हारे मुख पर आई प्रसन्नता मुझे मेरे दायित्व की पूर्णता का आभास कराती है. तुम्हे सुखी देख कर मुझे सुख का जो आभास होता है यही तो प्रेम है पार्वती !
जब तुमने अपने अस्त्र वहन कर शक्तिशाली दुर्गा रूप में अपने संरक्षण में मुझे शसस्त बनाया तो वह अनुभूति प्रेम की ही थी.
जब तुमने काली के रूप में संहार कर नृत्य करते हुए मेरे शरीर पर पाँव रखा तो तुम्हे अपनी भूल का आभास हुआ, और तुम्हारी जिह्वया बहार निकली, वही प्रेम था पार्वती.
जब तुम अपना सौंदर्यपूर्ण ललिता रूप जो कि अति भयंकर भैरवी रूप भी है, का दर्शन देती हो, और जब मैं तुम्हारे अति-भाग्यशाली मंगला रूप जोकि उग्र चंडिका रूप भी है, का अनुभव करता हूँ, जब मैं तुम्हे पूर्णतया देखता हूँ बिना किसी प्रयत्न के, तो मैं अनुभव करता हूँ कि मैं सत्य देखने में सक्षम हूँ . जब तुम मुझे अपने सम्पूर्ण रूपों के दर्शन देती हो और मुझे आभास कराती हो की मैं तुम्हारा विश्वासपात्र हूँ .इस तरह तुम मेरे लिए एक दर्पण बन जाती हो जिसमें झांक कर में स्वयं को देख पाता हूँ की मैं कौन हूँ . तुम अपने दर्शन से साक्षात् कराती हो और मैं आनंदविभोर हो नाच उठता हूँ और नटराज कहलाता हूँ, यही तो प्रेम है.
जब तुम बारम्बार स्वयं को मेरे प्रति समर्पित कर मुझे आभास कराती हो की मैं तुम्हारे योग्य हूँ, जब तुमने मेरी वास्तविकता को प्रतिबिम्भित कर मेरे दर्पण के रूप को धारण कर लिया वही तो प्रेम था पार्वती .

Thursday, May 12, 2016

सूर्य और राहू की युति.

सूर्य और राहू की युति.....
कुंडली में सूर्य नवग्रहों का राजा होता है और सूर्य के नजदीक जब कोई भी ग्रह आ जाता है तो वो अस्त हो जाता है यानी की अपनी छवि और प्रभाव को खो देता है ............ लेकिन कभी कभी ये काम उल्टा भी हो जाता है जब राहू सूर्य के साथ युति कर बैठता है तो इस स्थति को सूर्य ग्रहण योग कहा जाता है |
इस प्रकार की युति को अशुभ योग माना जाता है क्युकी इस युति के कारन जातक अल्पायु हो जाता है कुछ एक मामलो को छोड़कर यह सही पाया जाता है |सूर्य आत्मा का कारक ग्रह है इसलिए राहू की युति होने पर जातक में आत्म विश्वास की कमी रहती है |जातक की बयालीस साल की उम्र के आसपास संतान कष्ट पाती है |धन भी नाश हो जाता है |सूर्य और राहू की अशुभ युति कुंडली में चाहे किसी भी भाव में हो तो वह उस स्थान से सम्बंधित शुभ फलो का नाश कर देता है नातेदार और रिश्तेदारों से भी सम्बन्ध ख़राब करवा देता है |ऐसे समय में शत्रु ग्रह अपनी अपनी समयावधि में ही जातक को अशुभ फल देते है जैसे की शुक्र २५ वे वर्ष में, शनि ३६ वे वर्ष में और राहू ४२ वे वर्ष में तकलीफ देते है |
शत्रु ग्रह के साथ युति हो तो बुध ग्रह की शांति करवाने पर या उपाय करने पर ही अशुभ फलो में कमी होती है |अशुभ युति में सूर्य के साथ मित्र ग्रह चन्द्र, मंगल, गुरु हो तो उन पर भी अशुभ प्रभाव पड़ता है |सरकारी काम काज में परेशानिया बढ़ जाती है |
सूर्य रहू की युति हो तो अगर राहू की शांति करवाई जाए तो फिर रहू की समयावधि के बाद सूर्य का शुभ फल मिलता है और राहू के काल में भी अशुभ फलो में कमी आती है और शुभ फल की प्राप्ति होती है |
अशुभ प्रभाव के कारण जातक के विचार गंदे और कपट पूर्ण होते है |सूर्य और रहू की युति में अगर बुध साथ में हो तो फिर अशुभ फलो में कमी हो जाती है और सरकारी कामो में लाभ मिलता है |वैसे सूर्य और राहू अगर नवमे या ग्यारवे भाव में एक साथ हो तो विशेष रूप से ज्यादा अशुभ फल प्राप्त होते है | जीस घर में ये बैठे होते है उसके साथ साथ अपने आस पास के घरो को भी बिगाड़ देते है और अशुभ फल देने लगते है |जैसे की अगर ये युति जातक के छठे घर में हो तो सातवे भाव को भी दूषित कर डालते है और बारवे भाव को भी अशुभ बना देते है |
जातक की कुंडली में यदि सूर्य और राहू की युति हो और मंगल भी नीच का हो अशुभ हो या फिर राहू पर द्रष्टि न हो तो जातक को २१ और ४२ वर्ष की आयु में संतान को दुखी कर डालती है |जातक का भाग्य और स्वास्थ्य दोनों ही कमजोर हो जाते है |शरीर पर काले और सफ़ेद दाग कोढ़ जैसे हो जाते है |
शनि और मंगल दोनों नवमे भाग्य स्थान में बैठे हो और सूर्य और राहू की युति कुंडली में किसी भी स्थान में हो तो जातक का जन्म के समय से ही जीवन अच्छा रहता है |सूर्य और राहू की युति आठवे और दसवे भाव में हो तो जातक अल्पायु ही होता है |
----------------- इस युति के अशुभ का निवारण के उपाय-----------
--१--चोरी या धनहानि के कारन अगर आर्थिक हालत बिगडती है तो फिर कपडे में थोड़े से जौ बांधकर मकान के अंधरे हिस्से में वजन के निचे दबाकर रखे |
--२-- जातक को बार बार बुखार आता हो और आकर के जल्दी न उतरता हो तो जौ को गौ मूत्र में धोकर के नदी में बहाना चाहिए |
--३-- राहू की वस्तुए बादाम, नारियल आदि को बहते पानी में बहाना चाहिए |
--४-- ताम्बे का पैसा रात में अग्नि पर तपकर सवेरे बहते पानी में बहाए |पैसा पानी में बहाने के बाद तुरंत ही अपने रिश्तेदारों के सामने या पास न जाए उनके ऊपर राहू का दोष हो सकता है |
शुंभ भवतु.

क्या आपकी कुंड़ली मे भी कोई गृह आपको कष्ट पहुंचा रहा है

क्या आपकी कुंड़ली मे भी कोई गृह आपको कष्ट पहुंचा रहा है.??
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जो जीव एक बार श्री कृष्ण के शरणागत हो जाता है, उसे फिर किसी ज्योतिषी को अपनी ग्रहदशा और जन्म कुंडली दिखाने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
इसके पीछे का विज्ञान तो यह है कि भगवान् के शरणागत जीव की रक्षा स्वयं भगवान् किया करते हैं।
और सब ग्रह, नक्षत्र, देवी देवता श्री कृष्ण की ही शक्तियाँ हैं, सब उनके ही दास हैं।
इसलिए भक्त का अनिष्ट कोई कर नहीं सकता और प्रारब्ध जन्य अनिष्ट को कोई टाल नहीं सकता।
फिर भी कई बार हम अपने हाथों में में रंग-बिरंगी अंगूठियाँ पहनकर, जप, दान आदि करके हम अपने ग्रहों को तुष्ट करने में लगे रहते हैं।
श्रीकृष्ण हमारे सखा हैं...
आइये अब समझें कि किस ग्रह का हमारे सर्व समर्थ श्रीकृष्ण से कैसा संसारी नाता है।
जो मृत्यु के राजा हैं यम, वह यमुना जी के भाई हैं, और यमुना जी हैं भगवान की पटरानी, तो यम हुए भगवान के साले, तो हमारे सखा के साले हमारा क्या बिगाड़ेंगे.?
सूर्य हैं भगवान के ससुर (यमुना जी के पिता) तो हमारे मित्र के ससुर भला हमारा क्या अहित करेंगे.?
सूर्य के पुत्र हैं शनि, तो वह भी भगवान के साले हुए तो शनिदेव हमारा क्या बिगाड़ लेंगे.?
चंद्रमा और लक्ष्मी जी समुद्र से प्रकट हुए थे। लक्ष्मी जी भगवान की पत्नी हैं, और लक्ष्मी जी के भाई हैं चंद्रमा, क्योंकि दोनों के पिता हैं समुद्र।
तो चन्द्रमा भी भगवान के साले हुए, तो वे भी हमारा क्या बिगाड़ेंगे.?
बुध चंद्रमा के पुत्र हैं, तो उनसे भी हमारे प्यारे का ससुराल का नाता है।
हमारे सखा श्रीकृष्ण बुध के फूफाजी हुए, तो भला बुध हमारा क्या बिगाड़ेंगे.?
बृहस्पति और शुक्र वैसे ही बड़े सौम्य ग्रह हैं, फिर, ये दोनों ही परम विद्वान् हैं, इसलिए श्रीकृष्ण के भक्तों की तरफ इनकी कुदृष्टि कभी हो ही नहीं सकती।
राहु-केतु तो बेचारे जिस दिन एक से दो हुए, उस दिन से आज तक भगवान के चक्र के पराक्रम को कभी नहीं भूले।
भला वे कृष्ण के सखाओं की ओर टेढ़ी नजर से देखने की हिम्मत जुटा पाएँगे.?
तो अब बचे मंगल ग्रह...
ये हैं तो क्रूर गृह, लेकिन ये तो अपनी सत्यभामा जी के भाई हैं।
चलो, ये भी निकले हमारे प्यारे के ससुराल वाले।
अतः श्रीकृष्ण के साले होकर मंगल हमारा अनिष्ट कैसे करेंगे.?
इसलिए श्री कृष्ण के शरणागत को किसी भी ग्रह से कभी भी डरने की जरूरत नहीं.
संसार में कोई चाहकर भी अब हमारा अनिष्ट नहीं कर सकता।
इसलिए निर्भय होकर, डंके की चोट पर श्रीकृष्ण से अपना नाता जोड़े रखिए।
हाँ, जिसने श्रीकृष्ण से अभी तक कोई भी रिश्ता पक्का नहीं किया है, उसे संसार में पग-पग पर ख़तरा है।
उसे तो सब ग्रहों को अलग-अलग मनाना पडेगा।
इसलिए श्री कृष्ण से अपना रिश्ता जोड़ लो और इनकी शरण में आ जाओ..
सदा उनके नामो का जाप करो
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे,
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

नवमांश कुंडली

नवमांश कुंडली
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में ,जन्म लग्न ,चन्द्रलग्न कुडली के अतिरिक्त विविध वर्ग कुडली होरा,द्रेष्काण,सप्तमाश,नवमांश ,द्वादशांश ,त्रिंशांश का महत्व विशेष माना गया हे इन में नवमांश कुंडली का महत्व सविशेष हे
नवमांश को इतना महत्व क्यों ?
||"नून नवांशे तू कलत्रसौख्यं "|| नवमांश से पति या पत्नी का सुख देखा जाता हे
यह कहा गया हे पर उस से अतिरिक्त नवमांश कुंडली का महत्व इस लिए अन्य वर्ग कुंडली से बढ़ जाता हे की नवमांश कुंडली से मूल जन्म कुडली के ग्रहों का बलाबल भी देखा जाता हे ,
नवमांश कुंडली सोधन
३०अन्श की एक राशि ३ अंश २०" के ९ समान भाग
३ अंश २०" = एक नवमांश
१)मेष ,सिंह ,धन .......मेषादि राशि (अग्नि तत्व )
२)वृषभ ,कन्या ,मकर ...मकरदि राशि (पृथ्वी तत्व )
३)मिथुन ,तुला, कुम्भ ... तुलादि राशि (वायु तत्व )
४)कर्क ,वृश्र्चिक ,मीन ..कर्कादि राशि (जल तत्व )
नवमांश भाग
त्रिकोण में आनेवाली तीनो राशिया अग्नि ,पृथ्वी ,वायु,जल यह चारो तत्व में से एक होती हे
ग्रह या लग्न किस नवमांश में हे यह जानने के लिए ऊपर दिए गए त्रिकोण समूह में से गृह या लग्न किस समूह में आता हे और उस के अंश कितने हे यह देखना होगा ex. सूर्य -००-२६-५४-४२
यहाँ सूर्य के राशि अग्नितत्व समूह में नवमाश भाग के (9th part ) में सम्मिलित होता हे अत: मेष से सुरु कर ९ मी राशी धनु हे तो यहाँ सूर्य धनु राशी के नवमांश में आएगा |
शुभं भवतु

रोग और ज्योतिषी

रोग और ज्योतिषी
सूर्य:-आत्मा,प्रकाश,शक्ति,उत्साह,तीक्ष्णता,ह्रदय,जीवनीशक्ति,मस्तिष्क,पित्त एवं पीठ
चन्द्र:- जल,नाडियाँ,प्रभाव-विचार,चित्त,गति,स्तन,रूप,छाती,तिल्ली
मंगल:- रक्त,उत्तेजना,बाजू,क्रूरता,साहस,कान
बुध:- वाणी,स्मरण-शक्ति,घ्राण-शक्ति,गर्दन,निर्णायक-मति,भौहें
गुरू:-ज्ञान,गुण,श्रुति,श्रवण-शक्ति,सदगति,जिगर,दया,जाँघ,चर्बी तथा गुर्दे
शुक्र:- वीर्य,सुगन्ध,रति,त्वचा,गुप्ताँग,गाल
शनि:- वायु,पिंडली,टांगें,केश,दाँत
राहू:- परिश्रम,विरूद्धता,आन्दोलन/विद्रोही भावनाएं,शारीरिक मलिनता,गन्दा वातावरण
केतु:- गुप्त विद्या-ज्ञान,मूर्छा,भ्रम,भयानक रोग,सहनशक्ति,आलस्य
कौन सा ग्रह किस रोग का कारक
सूर्य : पित्त, वर्ण, जलन, उदर, सम्बन्धी रोग, रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी, न्यूरोलॉजी से सम्बन्धी रोग, नेत्र रोग, ह्रदय रोग, अस्थियों से सम्बन्धी रोग, कुष्ठ रोग, सिर के रोग, ज्वर, मूर्च्छा, रक्तस्त्राव, मिर्गी इत्यादि.
चन्द्रमा : ह्रदय एवं फेफड़े सम्बन्धी रोग, बायें नेत्र में विकार, अनिद्रा, अस्थमा, डायरिया, रक्ताल्पता, रक्तविकार, जल की अधिकता या कमी से संबंधित रोग, उल्टी किडनी संबंधित रोग, मधुमेह, ड्रॉप्सी, अपेन्डिक्स, कफ रोग,मूत्रविकार, मुख सम्बन्धी रोग, नासिका संबंधी रोग, पीलिया, मानसिक रोग इत्यादि.
मंगल : गर्मी के रोग, विषजनित रोग, व्रण, कुष्ठ, खुजली, रक्त सम्बन्धी रोग, गर्दन एवं कण्ठ से सम्बन्धित रोग, रक्तचाप, मूत्र सम्बन्धी रोग, ट्यूमर, कैंसर, पाइल्स, अल्सर, दस्त, दुर्घटना में रक्तस्त्राव, कटना, फोड़े-फुन्सी, ज्वर, अग्निदाह, चोट इत्यादि.
बुध : छाती से सम्बन्धित रोग, नसों से सम्बन्धित रोग, नाक से सम्बन्धित रोग, ज्वर, विषमय, खुजली, अस्थिभंग, टायफाइड, पागलपन, लकवा, मिर्गी, अल्सर, अजीर्ण, मुख के रोग, चर्मरोग, हिस्टीरिया, चक्कर आना, निमोनिया, विषम ज्वर, पीलिया, वाणी दोष, कण्ठ रोग, स्नायु रोग, इत्यादि.
गुरु : लीवर, किडनी, तिल्ली आदि से सम्बन्धित रोग, कर्ण सम्बन्धी रोग, मधुमेह, पीलिया, याददाश्त में कमी, जीभ एवं पिण्डलियों से सम्बन्धित रोग, मज्जा दोष, यकृत पीलिया, स्थूलता, दंत रोग, मस्तिष्क विकार इत्यादि.
शुक्र : दृष्टि सम्बन्धित रोग, जननेन्द्रिय सम्बन्धित रोग, मूत्र सम्बन्धित एवं गुप्त रोग, मिर्गी, अपच, गले के रोग, नपुंसकता, अन्त:स्त्रावी ग्रन्थियों से संबंधित रोग, मादक द्रव्यों के सेवन से उत्पन्न रोग, पीलिया रोग इत्यादि.
शनि : शारीरिक कमजोरी, दर्द, पेट दर्द, घुटनों या पैरों में होने वाला दर्द, दांतों अथवा त्वचा सम्बन्धित रोग, अस्थिभ्रंश, मांसपेशियों से सम्बन्धित रोग, लकवा, बहरापन, खांसी, दमा, अपच, स्नायुविकार इत्यादि.
राहु : मस्तिष्क सम्बन्धी विकार, यकृत सम्बन्धी विकार, निर्बलता, चेचक, पेट में कीड़े, ऊंचाई से गिरना, पागलपन, तेज दर्द, विषजनित परेशानियां, किसी प्रकार का रियेक्शन, पशुओं या जानवरों से शारीरिक कष्ट, कुष्ठ रोग, कैंसर इत्यादि.
केतु : वातजनित बीमारियां, रक्तदोष, चर्म रोग, श्रमशक्ति की कमी, सुस्ती, अर्कमण्यता, शरीर में चोट, घाव, एलर्जी, आकस्मिक रोग या परेशानी, कुत्ते का काटना इत्यादि. -
ग्रह युतियां और रोग
गुरु-राहु की युति हो तो दमा, तपेदिक या श्वास रोग से कष्ट होगा।
गुरु-बुध की युति हो तो भी दमा या श्वास या तपेदिक रोग से कष्ट होगा।
राहु-केतु की युति हो जोकि लालकिताब की वर्षकुण्डली में हो सकती है तो बवासीर रोग से कष्ट होगा।
चन्द्र-राहु की युति हो तो पागलपन या निमोनिया रोग से कष्ट होगा।
सूर्य-शुक्र की युति हो तो भी दमा या तपेदिक या श्वास रोग से कष्ट होगा।
मंगल-शनि की युति हो तो रक्त विकार, कोढ़ या जिस्म का फट जाना आदि रोग से कष्ट होगा अथवा दुर्घटना से चोट-चपेट लगने के कारण कष्‍ट होता है।
शुक्र-राहु की युति हो तो जातक नामर्द या नपुंसक होता है।
शुक्र-केतु की युति हो तो स्वप्न दोष, पेशाब संबंधी रोग होते हैं।
गुरु-मंगल या चन्द्र-मंगल की युति हो तो पीलिया रोग से कष्ट होता है।
चन्द्र-बुध या चन्द्र-मंगल की युति हो तो ग्रन्थि रोग से कष्ट होगा।
मंगल-राहु या केतु-मंगल की युति हो तो शरीर में टयूमर या कैंसर से कष्ट होगा।
गुरु-शुक्र की युति हो या ये आपस में दृष्टि संबंध बनाएं तो डॉयबिटीज के रोग से कष्ट होता है।
ये रोग प्रायः युति कारक ग्रहों की दशार्न्तदशा के साथ-साथ गोचर में भी अशुभ हों तो ग्रह युति का फल मिलता है! इन योगों को आप अपनी कुंडली में देखकर विचार सकते हैं। ऐसा करके आप होने वाले रोगों का पूर्वाभास करके स्‍वास्‍थ्‍य के लिए सजग रह सकते हैं या दूजों की कुण्‍डली में देखकर उन्‍हें सजग कर सकते हैं।