Thursday, May 12, 2016

रोग और ज्योतिषी

रोग और ज्योतिषी
सूर्य:-आत्मा,प्रकाश,शक्ति,उत्साह,तीक्ष्णता,ह्रदय,जीवनीशक्ति,मस्तिष्क,पित्त एवं पीठ
चन्द्र:- जल,नाडियाँ,प्रभाव-विचार,चित्त,गति,स्तन,रूप,छाती,तिल्ली
मंगल:- रक्त,उत्तेजना,बाजू,क्रूरता,साहस,कान
बुध:- वाणी,स्मरण-शक्ति,घ्राण-शक्ति,गर्दन,निर्णायक-मति,भौहें
गुरू:-ज्ञान,गुण,श्रुति,श्रवण-शक्ति,सदगति,जिगर,दया,जाँघ,चर्बी तथा गुर्दे
शुक्र:- वीर्य,सुगन्ध,रति,त्वचा,गुप्ताँग,गाल
शनि:- वायु,पिंडली,टांगें,केश,दाँत
राहू:- परिश्रम,विरूद्धता,आन्दोलन/विद्रोही भावनाएं,शारीरिक मलिनता,गन्दा वातावरण
केतु:- गुप्त विद्या-ज्ञान,मूर्छा,भ्रम,भयानक रोग,सहनशक्ति,आलस्य
कौन सा ग्रह किस रोग का कारक
सूर्य : पित्त, वर्ण, जलन, उदर, सम्बन्धी रोग, रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी, न्यूरोलॉजी से सम्बन्धी रोग, नेत्र रोग, ह्रदय रोग, अस्थियों से सम्बन्धी रोग, कुष्ठ रोग, सिर के रोग, ज्वर, मूर्च्छा, रक्तस्त्राव, मिर्गी इत्यादि.
चन्द्रमा : ह्रदय एवं फेफड़े सम्बन्धी रोग, बायें नेत्र में विकार, अनिद्रा, अस्थमा, डायरिया, रक्ताल्पता, रक्तविकार, जल की अधिकता या कमी से संबंधित रोग, उल्टी किडनी संबंधित रोग, मधुमेह, ड्रॉप्सी, अपेन्डिक्स, कफ रोग,मूत्रविकार, मुख सम्बन्धी रोग, नासिका संबंधी रोग, पीलिया, मानसिक रोग इत्यादि.
मंगल : गर्मी के रोग, विषजनित रोग, व्रण, कुष्ठ, खुजली, रक्त सम्बन्धी रोग, गर्दन एवं कण्ठ से सम्बन्धित रोग, रक्तचाप, मूत्र सम्बन्धी रोग, ट्यूमर, कैंसर, पाइल्स, अल्सर, दस्त, दुर्घटना में रक्तस्त्राव, कटना, फोड़े-फुन्सी, ज्वर, अग्निदाह, चोट इत्यादि.
बुध : छाती से सम्बन्धित रोग, नसों से सम्बन्धित रोग, नाक से सम्बन्धित रोग, ज्वर, विषमय, खुजली, अस्थिभंग, टायफाइड, पागलपन, लकवा, मिर्गी, अल्सर, अजीर्ण, मुख के रोग, चर्मरोग, हिस्टीरिया, चक्कर आना, निमोनिया, विषम ज्वर, पीलिया, वाणी दोष, कण्ठ रोग, स्नायु रोग, इत्यादि.
गुरु : लीवर, किडनी, तिल्ली आदि से सम्बन्धित रोग, कर्ण सम्बन्धी रोग, मधुमेह, पीलिया, याददाश्त में कमी, जीभ एवं पिण्डलियों से सम्बन्धित रोग, मज्जा दोष, यकृत पीलिया, स्थूलता, दंत रोग, मस्तिष्क विकार इत्यादि.
शुक्र : दृष्टि सम्बन्धित रोग, जननेन्द्रिय सम्बन्धित रोग, मूत्र सम्बन्धित एवं गुप्त रोग, मिर्गी, अपच, गले के रोग, नपुंसकता, अन्त:स्त्रावी ग्रन्थियों से संबंधित रोग, मादक द्रव्यों के सेवन से उत्पन्न रोग, पीलिया रोग इत्यादि.
शनि : शारीरिक कमजोरी, दर्द, पेट दर्द, घुटनों या पैरों में होने वाला दर्द, दांतों अथवा त्वचा सम्बन्धित रोग, अस्थिभ्रंश, मांसपेशियों से सम्बन्धित रोग, लकवा, बहरापन, खांसी, दमा, अपच, स्नायुविकार इत्यादि.
राहु : मस्तिष्क सम्बन्धी विकार, यकृत सम्बन्धी विकार, निर्बलता, चेचक, पेट में कीड़े, ऊंचाई से गिरना, पागलपन, तेज दर्द, विषजनित परेशानियां, किसी प्रकार का रियेक्शन, पशुओं या जानवरों से शारीरिक कष्ट, कुष्ठ रोग, कैंसर इत्यादि.
केतु : वातजनित बीमारियां, रक्तदोष, चर्म रोग, श्रमशक्ति की कमी, सुस्ती, अर्कमण्यता, शरीर में चोट, घाव, एलर्जी, आकस्मिक रोग या परेशानी, कुत्ते का काटना इत्यादि. -
ग्रह युतियां और रोग
गुरु-राहु की युति हो तो दमा, तपेदिक या श्वास रोग से कष्ट होगा।
गुरु-बुध की युति हो तो भी दमा या श्वास या तपेदिक रोग से कष्ट होगा।
राहु-केतु की युति हो जोकि लालकिताब की वर्षकुण्डली में हो सकती है तो बवासीर रोग से कष्ट होगा।
चन्द्र-राहु की युति हो तो पागलपन या निमोनिया रोग से कष्ट होगा।
सूर्य-शुक्र की युति हो तो भी दमा या तपेदिक या श्वास रोग से कष्ट होगा।
मंगल-शनि की युति हो तो रक्त विकार, कोढ़ या जिस्म का फट जाना आदि रोग से कष्ट होगा अथवा दुर्घटना से चोट-चपेट लगने के कारण कष्‍ट होता है।
शुक्र-राहु की युति हो तो जातक नामर्द या नपुंसक होता है।
शुक्र-केतु की युति हो तो स्वप्न दोष, पेशाब संबंधी रोग होते हैं।
गुरु-मंगल या चन्द्र-मंगल की युति हो तो पीलिया रोग से कष्ट होता है।
चन्द्र-बुध या चन्द्र-मंगल की युति हो तो ग्रन्थि रोग से कष्ट होगा।
मंगल-राहु या केतु-मंगल की युति हो तो शरीर में टयूमर या कैंसर से कष्ट होगा।
गुरु-शुक्र की युति हो या ये आपस में दृष्टि संबंध बनाएं तो डॉयबिटीज के रोग से कष्ट होता है।
ये रोग प्रायः युति कारक ग्रहों की दशार्न्तदशा के साथ-साथ गोचर में भी अशुभ हों तो ग्रह युति का फल मिलता है! इन योगों को आप अपनी कुंडली में देखकर विचार सकते हैं। ऐसा करके आप होने वाले रोगों का पूर्वाभास करके स्‍वास्‍थ्‍य के लिए सजग रह सकते हैं या दूजों की कुण्‍डली में देखकर उन्‍हें सजग कर सकते हैं।

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